अभी
चलना है रस्ते को मैं मंजिल
मान लुं कैसे?
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लुं कैसे?
तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझको घेरे है,
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लुं कैसे ?
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लुं कैसे?
तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझको घेरे है,
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लुं कैसे ?
मैं
उसका हूँ..वो
इस अहसास से इनकार करता है..
भरी महफिल में भी रुसवा..मुझे हर बार करता है..
यकीं है सारी दुनियाँ को..खफा है मुझसे वो लेकिन..
मुझे मालूम है फिर भी..मुझी से प्यार करता है...
भरी महफिल में भी रुसवा..मुझे हर बार करता है..
यकीं है सारी दुनियाँ को..खफा है मुझसे वो लेकिन..
मुझे मालूम है फिर भी..मुझी से प्यार करता है...
बदलने
को तो इन आँखो के मंजर कम नहीं
बदले..
तुम्हारी याद के मौसम ..हमारे गम नहीं बदले..
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी..तब तो मानोगी.
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले।
तुम्हारी याद के मौसम ..हमारे गम नहीं बदले..
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी..तब तो मानोगी.
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले।
तुम्हारे
पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता
हूँ,
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ,
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ!!
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ,
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ!!
पनाहों
में जो आया हो,तो
उस पर वार क्या करना?
जो दिल हारा हुआ हो,उस पे फिर अधिकार क्या करना?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई,तो दरिया पार क्या करना?
जो दिल हारा हुआ हो,उस पे फिर अधिकार क्या करना?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई,तो दरिया पार क्या करना?
जो
धरती से अम्बर जोड़े,उसका
नाम मोहब्बत है,
जो शीशे से पत्थर तोड़े,उसका नाम मोहब्बत है,
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर,
बहता दरिया वापस मोड़े,उसका नाम मोहब्बत है.
जो शीशे से पत्थर तोड़े,उसका नाम मोहब्बत है,
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर,
बहता दरिया वापस मोड़े,उसका नाम मोहब्बत है.
बहुत
बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह
नही पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया यूँ प्यार का क़िस्सा
कभी तुम सुन नही पाई कभी मै कह नही पाया...
हवाओं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया यूँ प्यार का क़िस्सा
कभी तुम सुन नही पाई कभी मै कह नही पाया...
मै
जब भी तेज़ चलता हूँ नज़ारे
छूट जाते हैं
कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं
मै रोता हूँ तो आकर लोग कंधा थपथपाते हैं
मैं हँसता हूँ तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं...
कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं
मै रोता हूँ तो आकर लोग कंधा थपथपाते हैं
मैं हँसता हूँ तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं...
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