About Me

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मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं. मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है! मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं....... कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी... कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी.... मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं... मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं... मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी... बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं... मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी... लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं!आप मुझे nksheoran@gmail.com पर ईमेल से सन्देश भेज सकते हैं.+919812335234,+919812794323

Tuesday, December 20, 2011

RO RO KAR PUKAR RAHA HOON

ro ro kar pukar raha hoo
hame jami se mat ukharo
rakt sraw se bheeg gaya hoo
hame kulhari ab mat maro
aamaa ke badal se poochho
mujhako kaise pala hai
har mausam me seechaa mujhako
mitti karkat jhaaraa hai
us mand hawao se poochho
jo jhula hame jhulaya hai
tum bhee apane aangan me
pero ka baag ugaa lo
ro ro kar pukar raha hoo
hame jami se mat ukharo
is dhara ki sundar chaayaa
ham pero se bani huyee hai
kan-kan ki mand hawaye
amrit ban kar chali huyee hai
hame se naataa hai jan jan ka
jo dhara pe aaye ge
hami se rista hai pag pag me
jo yaha se jaayege
sakhaaye aandhee tufano me tuti
thooth aag me mat daalo
ro ro kar pukar raha hoo
hame jami se mat ukharo
hame karate sab prani ko
amrit ras ka paan
hami se banati kitani ausadhi
nayee panapati jaan
kitane fal phool ham dete
fir bhee anjaan bane ho
liye kulhari khare huye ho
uttar do kyo bejaan khare ho
hami se sundar jiwan milata
buri nazar hampe mat dalo
ro ro kar pukar raha hoo
hame jami se mat ukharo
agar jami par nahi rahe ham
jeena dubhar ho jaayegaa
trahi-trahi jan jan me hogi
haahaakaar bhee mach jaayegaa
fir pachhato ge tum bande nahak
hamane inhe bigaaraa
hame se ghar dhar sab milataa hai
khara huaa hai jo dwaar kiwara
gali gali me per lagaao
har prani me ek aash jagaa do
ro ro kar pukar raha hoo
hame jami se mat ukharo

Abhee to kaliyaa khil rahee hai

Abhee to kaliyaa khil rahee hai,,
Fool to aa jaane do
Fir aa ke rash choos lena
Abhee jara muskaane do
Har adaa pe mugdh huye ho
Palako par mujhe bithao ge
Apani baaho me lekake
Mera din bahalaao ge
Abhi na roko rasta mera
Pahale ghar ko jaane do
Abhee to kaliyaa khil rahee hai,,
Fool to aa jaane do
Tumhe dekh kar chanchal ho gayee
Bhool gayee kuchh laaz ko
Ghar waalo ke baag lagaayee
Arpit kar dee aap ko
Abhee hawa purwa doli hai
Mujhe jara ithlaane do
Abhee to kaliyaa khil rahee hai,,
Fool to aa jaane do
Wah din jald hee aayegaa
Jab meri maang sajao ge
Apane haatho se amrit rash
Sajan mujhe pilayo ge
Subah to meri rah na roko
Saanjh jara ho jaane do
Abhee to kaliyaa khil rahee hai,,
Fool to aa jaane do

Monday, December 5, 2011

मास्टर जी

1. एक बै एक छोरा स्कूल नहीं आया । आगलै दिन मास्टर नै पूछा - रै, कल स्कूल क्यूं ना आया था?
बाळक बोल्या - मास्टर जी, म्हारी भैंस नै काटड़ा दिया था ।
मास्टर बोल्या - इसमैं के खास बात हो-गी ?
बाळक नै जवाब दिया - जी, खास बात ना सै, तै आप दे कै दिखा दो !!

2.
एक बै स्कूल में मास्टर जी नै एक छोरे तैं बूझा - "कपड़ा किसे कहते हैं ?"
छोरा बोल्या - जी बेरा कोनी ।
मास्टर गुस्से में हो-कै बोल्या - तेरी पैंट किस चीज की बनी है ?
छोरा बोल्या - जी, मेरे बाबू की पुरानी पैंट की !!

3.
एक भूगोल की मास्टरनी घणी पतली, बोद्दी-सी थी, जमा आइसक्रीम के लीकड़े जिसी । क्लास नै पाछले दिन का पाठ दोहरावै थी । बोली - बोलो बच्चो, धरती क्यूं घूमती है ?

एक छोरा बोल्या - मैडम, किमैं खा-पी लिया कर, ना तै न्यूं-ऐं घूमती दीखैगी !!

4.
भाइयो, हुया न्यूं अक एक-बै रात के बखत एक स्कूल की छात (छत) पड़-गी । तड़कैहें-तड़कैहें जब बाळक स्कूल में गये तै घणे कसूते राजी हो रहे थे, अर मेरे-मटे कूदते हांडैं - अक भाई यो तै कसूत काम हो-ग्या, ईब कई दिनां ताहीं पढ़ाई ए ना हो । सारे मास्टर अर हैडमास्टर खड़े हो-कै देखण लाग रहे - अर बाळकां के तै चेहरे कत्ती सिरसम के फूल जिसे खिल-रे थे ।
इतने में हैडमास्टर नै बगल में देख्या अक एक छोरा घणा मुरझाया सा, घणा भूंडा दुखी-सा, अर फूट-फूट कै रोवण लाग रहा था । ईब हैडमास्टर जी नै सोची अक यो छोरा तै घणा बढ़िया, पढ़णियां सै, अर बेचारा घणा दुख मान रहया सै स्कूल के नुकसान होवण का ।
हैडमास्टर आगै गया, उस नै डाटण खातिर, अर जा-कै बोल्या - "बेटा, दुखी मतना हो, मैं समझूं सूं तन्नै कितना दुख सै अक यो सारे गाम का नुकसान सै, अर ईब पढ़ाई कई दिनां ताहीं रुक ज्यागी । पर बेटे, मैं नई छत जितणी जलदी हो सकैगी, बणवा दूंगा" ।
छोरा एकदम तैं रोणा छोड कै बोल्या - "अरै ना मास्टरजी, इसा जुलम मतना करियो । मैं तै न्यूं रोऊं था अक मुश्किलां-सी तै छात पड़ी, अर मास्टर एक भी ना मरया" !!

5.
एक बै एक स्कूल में नाटक होया । उस नाटक में एक छोरी नै बूआ का रोल करना पड़-ग्या । फिर यो बूआ का रोल करे पाच्छै सारी क्लास के बाळक उसनै "बूआ-बूआ" कह कै छेड़ण लाग्गे ।
उस छोरी नै दुखी हो कै एक दिन मास्टर ताहीं बता दी अक - जी, ये सारे मन्नै बूआ-बूआ कह कै छेड़ैं सैं ।
मास्टर कै ऊठ्या छो, अर बोल्या - "अरै, खड़े हो ज्याओ जुणसे-जुणसे इसनै बूआ कहैं सैं" ।
सारी क्लास खड़ी हो गई, बस एक छोरा पाच्छै-सी बैठ्या रह-ग्या । मास्टर उस छोरे नैं बोल्या - क्यूं रै, तेरा के चक्कर सै ?
वो छोरा सहज-सी आवाज में बोल्या "जी, ये जुणसे खड़े सैं ना, मैं इन सारयां का फूफा सूँ !!

6.
एक छोरा क्लास में घणा बोल्या करता । उसका मास्टर बोल्या - रै छोरे, तेरै या बीमारी कित्तैं लाग्गी ?
छोरा बोल्या - जी या तै खानदानी सै । मेरा दादा वकील था अर मेरा बाबू मास्टर, उनकै भी या बीमारी थी ।
मास्टर बोल्या - अरै, तेरी मां तै ठीक-ठाक होगी ?
छोरे नै जवाब दिया - "जी, वा तै औरत सै" !!

7.
हिसाब का मास्टर तीसरी क्लास नै पढ़ावै था । बाळकां तैं बूझण लाग्या - दो रुपये का एक किलो गुड़ आवै सै, तै पच्चीस पईसे का कितना आवैगा ?"

थोड़ी हाण पाच्छै एक छोरे नै हाठ ठाया । मास्टर बोल्या - शाबाश लीलू, बता बेटा ।

लीलू – मास्टर जी, बताऊं ? दो छोटी-छोटी डळी अर थोड़े से भोरे !!

हमारे मास्टर जी और उनका निकर

आज भी याद आती है मुझे अपने स्कूल के दिनों की। गढ़वाल की एक सुंदर सी पहाड़ी के ऊपर एक समतल स्थान पर था हमारा जूनियर हाई स्कूल (आठवीं तक) , तीन तरफ से छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ। अच्छा ख़ासा मैदान बना था। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़, सामने उत्तर में विशाल हिमालय। दक्षिण में जंगल, जहां काफल, बांज, बुरान्स के लाल लाल मन मोहक फूल। जैसे कुदरत ने अपनी सारी संपदा यहीं आकर बिखेर दी हो। चार बजे स्कूल की छुट्टी होती थी, जिन बच्चों के घर नज़दीक थे वे तो अपने घर चले जाते थे, जो दूर से आते थे वे वहीं राशन-पानी और बिस्तरा के साथ आते थे और वहीं स्कूल में ही रहते थे।

हेड मास्टर जी के साथ एक अंग्रेज़ी के सर भी रहते थे। हमारे हेड मास्टर जी का नाम था गेन्दा राम। कहते हैं जब वे पैदा हुए थे, उस समय उनके घर के बाहर कुछ लड़के गेंद खेल रहे थे। गेंद उछल कर उनके पास आकर रुक गयी थी। बस उनके पिता जी ने उनका नाम उसी समय गेन्दा राम रख दिया था। उनके पास एक फ़ौजी निकर थी, जो उन्हें उनके दादा जी ने दी थी। जो फौज में हवलदार मेजर थे और वॉलीबॉल खेलते थे। उनकी दिली इच्छा थी कि मेरा पोता बड़ा होकर वॉलीबॉल और मेरा नाम रोशन करे।

जिस दिन से उनके दादा जी ने उन्हें यह निकर उन्हें दिया था उसी दिन से उन्होंने वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। निकर उनके घुटनों से नीचे तक आती थी। उनके दादा तो खूब मोटे तगड़े थे, लेकिन मास्टर गेंदराम जी दुबले-पतले थे। पेट कमर जैसे उनकी थी ही नहीं। फिर भी शाम को रोज स्कूल बंद होते ही वे निकर पहन कर वॉलीबॉल नेट पर खड़े हो जाते थे। निकर ढीली थी, डोरी से कमर पर कस कर बांध देते थे। अमूमन वे नेट पर बॉल मारते थे और उन्हें मारने के लिए उछलना पड़ता था। जैसे ही वे उछलते थे उनकी निकर नीचे आ जाती थी और वे उछलकर उसे ऊपर खिसका देते थे।

हमेशा ऐसा ही होता था और एक दिन, जैसे मास्टर जी ने बॉल मारी और निकर ऊपर खिसकाने लगे, तभी नेट पर बॉल फिर आ गई। उन्होंने निकर छोड़ कर उछाल मारी और बॉल नेट के पार। पॉइंट मिल गया, लेकिन मास्टर गेन्दा राम जी का निकर, रस्सी सहित नीचे धरती पर आ गिरा। खूब ताली बजी, मास्टर जी ने भी बजाई। दर्शकों ने मास्टर जी की निकर को और मास्टर जी ने गेम जीतने को।

मास्टरजी

आज पता नहीं क्यों बारिश की बौछार रुकने का नाम ही न ले रही थी। अनामिका को कल होने वाली परीक्षा की चिंता थी। सुबह से ही वह गणित के पुस्तक के पन्नों को बार-बार पलटकर उसके सवालों को हल किए जा रही थी। अंकगणित व बीजगणित के प्रश्न तो आसानी से हल हो रहे थे पर, ज्यामिति उसके लिए एक सिरदर्द बनकर खड़ा हुआ था। लाख कोशिशों के बावज़ूद ज्यामिति का वह प्रश्न हल नहीं हो पा रहा था। उसे लगने लगा कि वह अपने प्रथम स्थान को कायम न रख पाएगी। अब वह पूछे तो भला किससे ? उस गाँव में तो उसकी मदद करनेवाला भी तो कोई न था। वृक्ष, लता-गुल्मों से हरे-भरे उस गाँव में कृषि विशेषज्ञ तो कई थे पर, गणित...
तभी उसे स्वरूप मास्टरजी का खयाल आया। वे गाँव में प्राइवेट ट्यूशन का कारोबार करते थे। उस कारोबार से उनकी आमदनी भी अच्छी ही थी। अनामिका के बाबूजी को कई बार उन्होंने कहा था कि उसकी पुत्री को वे उनके पास भेज दिया करें पर, अनामिका को अपने स्वाध्याय पर विश्वास था। आज उसका विश्वास डगमगा गया था। सोचा उनके यहाँ जाकर क्यों न उनसे सहायता ली जाए। परन्तु, साथ ही एक संकोच-बोध से उसका मन भर गया। उन्होंने तो उसे कई बार बुलाया था; वही तो नहीं गई थी। फिर सोचा, मास्टरजी ही तो हैं, अवश्य उसकी सहायता करंगे। इसी उधेड़-बुन में संध्या होने को आई। अबकी वह निश्चय कर चुकी थी कि वह उनसे सहायता लेने अवश्य जाएगी।
मास्टरजी का घर गाँव के दूसरी छोर पर था। वहाँ वे एकांतवास किया करते थे। बस सुबह और शाम को बच्चों की शोरगुल से आभास होता था कि वहाँ कोई रहता भी है, अन्यथा वह क्षेत्र वीराना ही था। लोगों का मानना था कि मास्टरजी बड़े शांतिप्रिय थे, इसलिए उन्होंने इस वीराने में ही अपना आशियाना बनाया था।
अब भी मूसलाधार बारिश हो रही थी। शाम का समय और उसपर रह-रहकर जोरदार मेघ-गर्जन उस वातावरण को और भी भयावह बना रहे थे। अनामिका इंतज़ार कर रही थी कि कब बारिश रुके। संयोग से बारिश काफ़ी धीमे हो गई। अनामिका ने अपनी किताब व कॉपी उठाई और तेज़ कदमों से मास्टरजी के घर की ओर चल दी। घर से निकलने समय उसकी माँ ने उससे पूछा भी कि वह कहाँ जा रही है? उसने चिल्लाकर कहा कि मास्टरजी के यहाँ। माँ निश्चिंत हो गई। तेज़ कदमों से वृक्ष के झुंडों, लता-गुल्मों को पार करते हुए वह बढ़ी जा रही थी। अचानक, रुकी बारिश फिर से तेज़ हो गई। आधा से अधिक रास्ता बीत चुका था, इसलिए वह न लौटी। अपनी किताब-कॉपी को संभालते हुए अख़िरकार पानी से पूरी तरह तर-बतर मास्टरजी के घर के दरवाज़े पर पहुँच चुकी थी। अंधेरा बढ़ चला था। बारिश की वज़ह से आज मास्टरजी का कारोबार ठप्प पड़ा था। पूरी नीरवता व्याप्त थी। बस, बारिश की रिमझिम ही पूरे परिवृत्त में मौज़ूद थी। फिर से अनामिका के मस्तिष्क में वही द्विधा-बोध, जो घर से निकलने से पहले थी, जागृत हुई। पर, दृढ़ निश्चय कर उसने उनका दरवाज़ा खटखटाया। मास्टरजी निकले। यह उन दोनों का प्रथम साक्षात्कार था। तभी बिजली चमकी। उसके प्रकाश में गीले कपड़ों में लिपटा नवम की छात्रा अनामिका का जिस्म देख मास्टरजी की आँखें चमक उठीं। मास्टरजी ने उससे अंदर आने को कहा। थोड़ी ही देर बाद तीक्ष्ण आवाज़ से पूरा परिवेश गुँजायमान हो गया – ये क्या कर रहे हैं आप... आह... बचाओ... मत कीजिए ऐसा... बचाओ... बचाओ...
अगली सुबह बलात्कृत निर्वस्त्र अनामिका अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ निढाल हो चली जा रही थी परीक्षा देने...

Sunday, December 4, 2011

Yara Mera Birthday Bhool Na Jana

Yara Mera Birthday Bhool Na Jana
Dua Karna Aur Hamey Batana

Kuch Likh Doh Hamarey Liye Bhi Chain Aa Jayega
Warna Ek Shaam Fir Uski Yaad Meh Yuhi Beet Jayega

Kabhi Pehley Hum Yu Dua Maanga Nahi Kartey They
Saath They Unkey Toh Fir Socha Nahi Kartey They

Aaj Tanha Yu Reh Gaya Hu
Aap Key Saharey Ji Gaya Hu

3rd December Koh Born Huye They
Sapney Hazaar Buney Huye They

Aap Ki Mehfil Meh Sajney Aa Gaye Hai
Yaaro Galey Lagao Apna Banney Aa Gaye Hai

Tuesday, February 8, 2011

प्यार भरे दिन का प्यारा सा इतिहास



प्यार का दिन, प्यार के इजहार का दिन। अपने जज्बातों को शब्दों में बयाँ करने के लिए शायद इस दिन का हर धड़कते हुए दिल को बेसब्री से इंतजार होता है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, प्यार के परवानों के दिन की, वेलेंटाइन-डे की...। प्यार भरा यह दिन खुशियों का प्रतीक माना जाता है और हर प्यार करने वाले शख्स के लिए अलग ही अहमियत रखता है।

14 फरवरी को मनाया जाने वाला यह दिन विभिन्न देशों में अलग-अलग तरह से और अलग-अलग विश्वास के साथ मनाया जाता है। पश्चिमी देशों में तो इस दिन की रौनक अपने शबाब पर ही होती है, मगर पूर्वी देशों में भी इस दिन को मनाने का अपना-अपना अंदाज होता है।

जहाँ चीन में यह दिन 'नाइट्स ऑफ सेवेन्स' प्यार में डूबे दिलों के लिए खास होता है, वहीं जापान व कोरिया में इस पर्व को 'वाइट डे' का नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं, इन देशों में इस दिन से लगाए पूरे एक महीने तक यहाँ पर लोग अपने प्यार का इजहार करते हैं और एक-दूसरे को तोहफे व फूल देकर अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं।

इस पर्व पर पश्चिमी देशों में पारंपरिक रूप से इस पर्व को मनाने के लिए 'वेलेंटाइन-डे' नाम से प्रेम-पत्रों का आदान प्रदान तो किया जाता है ही, साथ में दिल, क्यूपिड, फूलों आदि प्रेम के चिन्हों को उपहार स्वरूप देकर अपनी भावनाओं को भी इजहार किया जाता है। 19वीं सदीं में अमेरिका ने इस दिन पर अधिकारिक तौर पर अवकाश घोषित कर दिया था।

यू.एस ग्रीटिंग कार्ड के अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में प्रति वर्ष करीब एक बिलियन वेलेंटाइन्स एक-दूसरे को कार्ड भेजते हैं, जो क्रिसमस के बाद दूसरे स्थान सबसे अधिक कार्ड के विक्रय वाला पर्व माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि वेलेंटाइन-डे मूल रूप से संत वेलेंटाइन के नाम पर रखा गया है। परंतु सैंट वेलेंटाइन के विषय में ऐतिहासिक तौर पर विभिन्न मत हैं और कुछ भी सटीक जानकारी नहीं है। 1969 में कैथोलिक चर्च ने कुल ग्यारह सेंट वेलेंटाइन के होने की पुष्टि की और 14 फरवरी को उनके सम्मान में पर्व मनाने की घोषणा की। इनमें सबसे महत्वपूर्ण वेलेंटाइन रोम के सेंट वेलेंटाइन माने जाते हैं।

1260 में संकलित कि गई 'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' नामक पुस्तक में सेंट वेलेंटाइन का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार शहंशाह क्लॉडियस के शासन में सेंट वेलेंटाइन ने जब ईसाई धर्म को अपनाने से इंकार कर दिया था, तो क्लॉडियस ने उनका सिर कलम करने के आदेश दिए।

कहा जाता है कि सेंट वेलेंटाइन ने अपनी मृत्यु के समय जेलर की नेत्रहीन बेटी जैकोबस को नेत्रदान किया व जेकोबस को एक पत्र लिखा, जिसमें अंत में उन्होंने लिखा था 'तुम्हारा वेलेंटाइन'। यह दिन था 14 फरवरी, जिसे बाद में इस संत के नाम से मनाया जाने लगा और वेलेंटाइन-डे के बहाने पूरे विश्व में निःस्वार्थ प्रेम का संदेश फैलाया जाता है।