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मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं. मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है! मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं....... कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी... कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी.... मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं... मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं... मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी... बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं... मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी... लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं!आप मुझे nksheoran@gmail.com पर ईमेल से सन्देश भेज सकते हैं.+919812335234,+919812794323

Monday, November 29, 2010

सपूत......एक लघु कथा

पुराने ज़माने की बात है ....तब आज की तरह पानी के लिए नल और बोरिंग जैसी सुविधा नही थी ....सिर पर कई घड़ों का भार लिए स्त्रियाँ कई किलोमीटर दूर तक जा कर कुओं या बावडियों से पानी भार कर लाती थी
एक बार इसी तरह तीन महिलाएं घर की जरुरत के लिए पानी भार कर ला रही थी ...
तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की ...
पहली महिला ने कहा ..." मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् है ....शास्त्रों का विषद ज्ञान रखता है ...आज तक कोई भी उसे शास्त्रार्थ में नही हरा सका है ....."

दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रही ..." हाँ , बहन ...पुत्र यदि विद्वान् हो तो पूरा वंश गौरान्वित होता है ...मेरा पुत्र भी बहुत चतुर है ...व्यवसाय में उसका कोई सानी नही ....उसके व्यवसाय सँभालने के बाद व्यापार में बहुत प्रगति हुई है ..."

तीसरी महिला चुप ही रही ....
" क्यों बहन , तुम अपने पुत्र के बारे में कुछ नही कह रही ...उसकी योग्यता के बारे में भी तो हमें कुछ बताओ ..." दोनों गर्वोन्मत्त महिलाओं ने उससे कहा .....

" क्या कहूँ बहन , मेरा पुत्र बहुत ही साधारण युवक है ....अपनी शिक्षा के अलावा घर के काम काज में अपने पिता का हाथ बटाता है ...कभी कभी जंगल से लकडिया भी बीन कर लाता है ..."

सकुचाते हुए तीसरी महिला ने कहा ...

अभी वे थोड़ी दूर ही चली थी की दोनों महिलाओं के विद्वान् और चतुर पुत्र साथ जाते हुए रास्ते में मिल गए ...दोनों महिलाओं ने गदगद होते हुए अपने पुत्र का परिचय कराया ....बहुत विनम्रता से उन्होंने तीनो माताओं को प्रणाम किया और अपनी राह चले गए....

उन्होंने कुछ दूरी ही तय की ही थी कि अचानक तीसरी महिला का पुत्र वहां आ पहुँचा ...पास आने पर बहुत संकोच के साथ उस महिला ने अपने पुत्र का परिचय दिया ....

उस युवक ने सभी को विनम्रता से प्रणाम किया ....और बोला ...
" आप सभी माताएं इस तपती दुपहरी में इतनी दूरी तय कर आयी है ....लाईये , कुछ बोझ मैं भी बटा दू ..."
और उन महिलाओं के मना करते रहने के बावजूद उन सबसे एक एक पानी का घड़ा ले कर अपने सिर पर रख लिया ....

अब दोनों माताएं शर्मिंदा थी ...

" बहन , तुम तो कहती थी तुम्हारा पुत्र साधारण है ....हमारे विद्वान् पुत्र तो हमारे भार को अनदेखा कर चले गए ...मगर तुम्हारे पुत्र से तो सिर्फ़ तुम्हारा...अपितु हमारा भार भी अपने कन्धों पर ले लिया ...बहन , तुम धन्य हो , तुम्हारा पुत्र तो अद्वितीय असाधारण है...सपूत की माता कहलाने की सच्ची अधिकारिणी तो सिर्फ़ तुम ही हो ......"

साधारण में भी असाधारण मनुष्यों का दर्शन लाभ हमें यत्र तत्र होता ही है ...हम अपने जीवन में कितने सफल हैं ....सिर्फ़ यही मायने नही रखता .....हमारा जीवन दूसरों के लिए कितना मायने रखता है....यह अधिक महत्वपूर्ण है ......!!

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ...किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार ...जीना इसी का नाम है .....

समय बड़ा बलवान

बहुत पहले की बात है। किशन की मां हर रविवार को कुछ अच्छे और मीठे पकवान बनाया करती थीं। वे अपने बेटे को बहुत प्यार करती थीं। एक दिन जब वे मीठी खीर बना रही थीं, तो देखा कि गुड़ खत्म हो गया है। उन्होंने सोचा कि क्यों न किशन को गुड़ लाने के लिए कहा जाए! साथ ही, उन्होंने मन ही मन यह भी सोचा कि वह समय पर गुड़ ला पाएगा या नहीं! फिर वे सोचने लगीं कि यदि वह नहीं भी ला पाएगा, तो मैं स्वयं ले आऊंगी। और कुछ सोचते हुए उन्होंने नन्हे किशन को आवाज लगाई और उसके हाथ पर दो आना रखते हुए कहा, 'बेटा दौड़ कर जाओ, और दुकान से गुड़ ले आओ।'
किशन घर से बाहर आया। राह में किशन ने देखा कि कुछ लोग एक जगह पर खड़े हैं और किसी चीज को ध्यानपूर्वक देख रहे हैं। वह कौतूहलवश पास गया, तो देखा कि कुछ लोग कठपुतलियों का नाच दिखा रहे हैं। किशन का बाल मन भी नाच देखने के लिए थोड़ा मचल उठा। वह उस जगह जाकर नाच देखने लगा। उस मनमोहक खेल में वह इतना रम गया कि घर का कुछ खयाल ही न रहा। तमाशा खत्म होने के बाद जब वह गुड़ लेकर घर पहुंचा, तो देखा कि खीर तैयार हो चुकी है। शायद मां खुद दुकान से गुड़ ले आई थी! वह आत्मग्लानि से भर कर एक कोने में बैठ गया। उस वक्त उसके मन में यह विचार आया कि ईश्वर ने मुझे किसी आवश्यक कार्य को करने के लिए ही इस पृथ्वी पर भेजा है! मां के साधारण कार्य को भी मैं जब पूरा नहीं कर पाया, तो जीवन में श्रेष्ठ कार्यो को कैसे समय पर पूरा कर पाऊंगा? सच तो यह है कि उस खास कार्य को पूरा करना ही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए हमें समय के सदुपयोग पर भी विचार करना चाहिए। क्योंकि किसी भी कार्य को, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो, यदि हम समय पर पूरा नहीं कर पाते हैं, तो बड़े कार्यो को संपन्न करने के बारे में कैसे सोच पाएंगे?

जाट जुगाड़ी

भाई जाट जुगाड़ी आदमी हो से.  किते न किते तै सारी बाता का जुगाड़ कर लिया करे.
एक बै एक जाट और एक बामण का छोरा एक एक ऊंट ले के जंगल में घुमण जा रे.
जाट के छोरे की नकेल टूट गी. ऊंट उसने तंग करण लाग गया.
वो बामण के छोरे तै बोल्या भाई यो शरीर के तागा (जनेऊ ) बांद रहा यो मने दे दे.
यो ऊंट मने दुखी कर रहा से .
बामण का बोलूया- न भाई यो जनेऊ तै हमारा धरम से में ना दू .
वो दुखी सुखी हो के घरा आगे .
आते ही जाट का छोरा आपने बाबु तै बोल्या — बाबु आज जंगल में इस बामण के ने मेरी गल्या
इसा काम करा . एक तागा माँगा था वो भी न दिया . आगे इन तै वयवहार कोन्या राखना.
उसका बाबु बोल्या — अरे इसका बाबु भी इसा ऐ था . तेरी बेबे के ब्याह आले दिन तेरी बेबे बीमार होगी
तै मने बामण ताहि न्यू कही के भाई एक बै तू फेरा के उपर आपनी छोरी नै बिठा दे एक घंटे खातर
घाल तै मैं आपनी ने दूंगा , पर भाई यो बामण मान्या नही /
छोरा बोल्या — फेर के हुआ बाबु
बाबु बोल्या - अरे होना के था फेर एक घंटे खातर तेरी माँ फेरा पे बठानी पड़ी

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,

तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.


एक दोस्त है कच्चा पक्का सा,


एक झूठ है आधा सच्चा सा.


जज़्बात को ढके एक पर्दा बस,


एक बहाना है अच्छा अच्छा सा.


जीवन का एक ऐसा साथी है,


जो दूर हो के पास नहीं.


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,


तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ..


हवा का एक सुहाना झोंका है,


कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा.


शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले,


कभी अपना तो कभी बेगानों सा.


जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र,


जो समंदर है, पर दिल को प्यास नहीं.


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,


तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.


एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है,


यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है.


यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं,


पर कभी -कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है.


यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है,


पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं.


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,


तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

Saturday, November 27, 2010

विश्व कप का बुखार

विश्व कप का बुखार

एक होता है बुखार, एक दिन में उतर जाता है। जैसे एक दिवसीय क्रिकेट मैच, किस्सा ख़त्म। दूसरा होता है मियादी ज्वर। महीने-दो महीने से कम में नहीं जाता, विश्व कप की तरह। आज कल यही मौसम चल रहा है और विश्व कप का बुखार ज़ोरों पर है। इस बीमारी के लक्षण एकदम आम हैं। इस बीमारी में लोग-बाग बहुत व्यस्त हो जाते हैं, उनकी ज़िंदगी व्यस्ततम रहने लगती है।
दफ़्तरों में कर्मचारियों की ही नहीं, हाक़िमों की उपस्थिति में भी अप्रत्याशित कमी हो जाती है। सिनेमा हॉल खाली रहने लगते हैं। बन कर तैयार फ़िल्मों के रिलीज़ की तारीखें मुल्तवी कर दी जाती है। डाइरेक्टर, प्रोड्यूसर भी सोचता है जब हम खुद क्रिकेट देखने में मश्गूल हैं तो कौन-सा पागल दर्शक हमारी फ़िल्में देखने आएगा। किताबें तो वैसे ही कोई नहीं पढ़ता है पर टेलिविजन पर भी स्पोर्ट्स चैनलों की ही चाँदी हो जाती है और सारे विज्ञापन उनकी ही झोली में गिरने को आतुर हो जाते हैं। दर्शक भी उन्हीं चैनलों का अवलोकन करते हैं। मतलब ये बुखार लगा तो दुनिया की सारी चीज़ें फीकी हैं।
जिसे देखो वही इस कप में डूबा हुआ है। पता नहीं इसे विश्व कप कहते क्यों हैं, आख़िर इसका वास्तविक अर्थ क्या है। पर इतना तो तय है कि समूचा विश्व इस छोटे से कप में समाया हुआ है। हर कोई इसकी चर्चा में डूब - उतरा रहा है। जिन लोगों में दम है वे तो सीधे साउथ अफ्रीका पहुँच गए हैं। जो नहीं जा पाए हैं उनके लिए टेलीविज़न एक मात्र सहारा है। इन दिनों गली-गली में भी जहाँ देखो सब क्रिकेट ही खेल रहे हैं। जो क्रिकेट नहीं खेल पा रहे हैं वे लोग क्रिकेट पर सट्टा खेल रहे हैं।
वैसे यह कोई बड़ी बात नहीं है। जब भी विश्वकप आता है, ऐसा ही होता है। ऋतु बसंत के आते ही आमों पर मंज़र लद जाते हैं। भ्रमरों का गुंजन प्रारंभ हो जाता है, कोयल की कूक दिल में हूक उठाने लगती है। मतलब चारों ओर मस्ती ही मस्ती। अफ़सर चपरासी से स्कोर पूछ रहा है, चपरासी गदगद हो कर साहब को बता रहा है। यही तो मौका है जब समाजवाद का सपना साकार होता नज़र आ रहा है। शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीने में मानहानि नहीं समझ रहे हैं। आप राह चलती खूबसूरत लड़की की नज़रों में नज़रें डालते हैं और वह आपसे स्कोर पूछती है, आप धन्य हो जाते हैं। हे क्रिकेट देवता तुम्हें सलाम।
एक कंपनी का बिस्किट खाइए तो वह आपको सीधे मैदान में जाकर खेल का मज़ा लेने के लिए हवाई जहाज़ का टिकट उपलब्ध करा रही है। दूसरी कंपनी का साबुन ख़रीदिए तो वह आपको कप पाने वाले खिलाड़ी के साथ डिनर टेबल पर गप लड़ाने का मौका दिलाएगी। एक टी.वी. कंपनी के विज्ञापन में तो बताया गया है कि विश्व कप देखने के लिए एक मात्र उसी कंपनी की टी.वी. ऑफिशीयल है।
इन दिनों हर जगह एक ही रंग है। एक होटल में खाना खाने गया तो चमचे की जगह छोटा-सा बैट रखा था और रसगुल्ले को देखकर लग रहा था जैसे मिठाई नहीं क्रिकेट की गेंदे परोस दी गई हो।
क्रिकेट को छोड़ कर किसी को कुछ सूझता ही नहीं। पिछली बार जब विश्व कप हुआ था मेरे मुहल्ले की एक लड़की अपने खिलाड़ी नंबर वन के साथ टेस्ट मैच खेलने हेतु घर से गुप्त प्रयाण कर गई। पर घर वालों को इस घटना की ख़बर तब लगी, जब विश्व कप का समापन हो गया। अगर विश्व कप और लंबा चलता तो पता नहीं वह जाने कितने चौके, छक्के और शतक आराम से लगाती रहती और लोग विश्व कप में रमें रहते।

इसी तरह विश्व कप के दौरान एक मित्र के घर चोर घुसा। पहले तो पूरे परिवार के साथ बैठ कर उसने दो ओवर तक मैच का मज़ा लिया और जब तीसरा विकेट गिर गया तो आराम से उठ कर घर से टेपरिकार्डर, घड़ियाँ, ज़ेवर आदि समेट कर चलता बना और मित्र महोदय सपरिवार बेख़बर होकर क्रिकेट देखते रहे।
कई घरों में तो मैंने देखा है घर के मनुष्य प्राणी ही नहीं, कुत्ते-बिल्ली भी उतने ही चाव से विश्व कप क्रिकेट का आनंद उठाते हैं। कभी-कभी तो मैं हीन भावना का शिकार होने लगता हूँ, समूचा देश, बल्कि समूची दुनिया इस वर्ल्ड कप के बुखार में तप रहा है और मुझे जरा-सा टेंपरेचर भी नहीं।

सच कहिए तो इस समय दुनिया में दो ही सनकी या पागल हैं। एक तो मैं स्वयं जो वर्ल्ड कप, क्रिकेट, सट्टेबाज़ी और स्कोर बोर्ड से मुँह मोड़ कर यह लेख लिखने बैठा हूँ और दूसरे आप जो इतनी देर से इसे पढ़ रहे हैं। मैं तो चला विश्व कप के आइने में खिलाड़ियों का चेहरा देखने। वैसे भी यह लेख तो आप पढ़ ही चुके हैं और चाहें तो आप भी सारी दुनिया के साथ इसका लुत्फ़ उठा सकते हैं।

बॉस मेहरबान तो गधा पहलवान

बॉस मेहरबान तो गधा पहलवान

बॉस मेहरबान तो गधा पहलवान। गधे और आदमी में फ़र्क होता हैं। गधा काम करता है और आदमी नाम। वैसे गधे को नाम कमाने का कोई शौक नहीं होता। क्योंकि वह जानता है, नाम होगा तो क्या बदनाम न होंगे? मसलन फलां बहुत महान गधा है या तुम बड़े होकर बहुत बड़े गधे बनोगे। आख़िर रहेगा तो गधा ही। यानी जितनी बड़ी उपाधि उतना बड़ा अपमान। आदमी गधे की इसी मजबूरी का फ़ायदा उठाता है। विभाग कोई भी हो काम गधा करता है नाम आदमी ले जाता है। लेकिन आदमी के साथ रहकर गधों में भी जागरूकता आ रही है। उन्हें धीरे-धीरे सफलता का रहस्य समझ में आने लगा है।
एक ऐसा ही गधा जिसने वफ़ादारी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की सारी सीमाएँ लाँघते हुए ज़िंदगी भर गदर्भ परंपरा का पालन किया, एक दिन बॉस की दुल्ली का शिकार हो गया। काफ़ी रोया, गिड़गिड़ाया तो उसकी जगह पर उसके बच्चे को नौकरी दे दी गई। गधे ने पहले ही दिन बेटे को चेताया जो गलती मैंने की वह तुम मत दोहराना। फिर उसने अपने सेवाकाल के तमाम अनुभवों को निचोड़ते हुए सफलता के कुछ टिप्स दिए -
"तुम्हारा ध्यान काम में हो या न हो, निगाहें बॉस के केबिन की तरफ़ होनी चाहिए। केबिन में कौन आता है कौन जाता है, सब पर ध्यान दो। कौन हँसता हुआ आता है और कान मुँह लटकाए। इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि बॉस किस पर मेहरबान है। फिर तुम उन लोगों के क़रीब होते जाओगे जो बॉस के क़रीबी हैं। तुम्हारी इस आदत के दूरगामी परिणाम होंगे।
तुम्हें कभी सरवाइकल स्पांडिलाइटिस की बीमारी नहीं होगी जिसकी वजह से मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
बार-बार गर्दन उठाते रहने से तुम्हारी गर्दन थोड़ी लंबी हो जाएगी, जिराफ़ की तरह। फिर तुम्हें कोई गधा नहीं समझेगा।
गर्दन लंबी होने से तुम दूसरे की फ़ाइलों में भी ताक-झाँक कर सकते हो, यहाँ तक कि गोपनीय फ़ाइलों में भी।
केबिन में आते जाते बॉस से अक्सर तुम्हारी निगाहें मिलेंगी। बॉस को नमस्ते करने का यह क्षणिक पर स्वर्णिम मौका मत गँवाना। वे कर्मचारी बहुत खुशनसीब होते हैं जिनसे बॉस की नज़र मिलती है। फिर एक गधे की क्या औकात। मैंने हज़ार बार नमस्कार किया होगा लेकिन उसने कभी जवाब नहीं दिया। नमस्कार-बाण हाम्योपैथिक दवाओं की तरह असर करता है, धीरे-धीरे पर अचूक। और अगर इससे कोई विशेष फ़ायदा न हो तो नुकसान का तो बिल्कुल ख़तरा नहीं।

सदा केबिनोन्मुख रहने से तुम बॉस की निगाह में रहोगे ऐसे में चपरासी की अनुपस्थिति में बॉस की सेवा का सुअवसर कब तुम्हें मिल जाए कोई नहीं जानता।
जैसे-जैसे तुम बॉस के क़रीब होते जाओगे, तुम्हारे प्रति सीनियर्स का नज़रिया बदलेगा और साथ ही बदलेगी तुम्हारी तकदीर।
अपने आगे वालों से बतियाते रहो और पीछे वालों को लतियाते रहो फिर कोई भी तुमसे आगे नहीं बढ़ पाएगा।

हमारे पतलू भाई

हमारे पतलू भाई
पतलू भाई जिन्हें कुछ लोग किताबी कीड़ा कहते तो कुछ किताबें चाटने वाला दीमक। पतलू भाई थे मस्त मौला जो इन सब बातों को सुनकर वैसे ही अनसुना कर दिया करते जैसे संगीत के जानकार आजकल के फ़िल्मी गानों को। पढ़ाई और तैयारी तक तो सब ठीक रहता लेकिन परिणाम का तो जैसे छत्तीस का आँकड़ा था हमारे पतलू भाई से, कभी उनके पक्ष में आता ही नहीं था और पतलू भाई चाहें जो कर लें, जब भी परिणाम आता, तो पतलू भाई का डब्बा गोल हो जाया करता था। पतलू भाई का परिणाम एक बार फिर आया और अनुक्रमांक अख़बार में छपते-छपते रह गया जबकि इस बार तो अनुक्रमांक एक सम संख्या थी और लोकसभा मार्ग पर बैठे ज्योतिषाचार्य के तोते ने जो चिठ्ठी निकाली थी उस हिसाब से तो पतलू भाई को उत्तीर्ण हो जाना चाहिए था। इस बार तो पतलू भाई ने इतनी मेहनत की थी कि चप्पल घिस गई थी, पतलून फट गई थी।
अब होनी को कौन टाल सकता है, ये पाँचवी बार लगातार अनुत्तीर्ण होने वाली दुर्घटना घट ही गई। बारहवीं कक्षा की पढ़ाई कठिन है ये तो पतलू भाई ने सुना था लेकिन बारहवीं और दसवीं की पढ़ाई में इतना अंतर है इसका एहसास उन्हें आज हुआ। दसवीं में पतलू भाई ने तीसरे प्रयास में ही विजय पताका फहरा दी थी। पतलू भाई पढ़-लिखकर डाक्टर बनना चाहते थे लेकिन इस बारहवीं में अनुत्तीर्ण होने वाली घटना ने उनके डाक्टर बनने के सपने का पोस्टमार्टम कर डाला। पतलू भाई ने सुन रखा था कि असफलता निराशा का सूत्र कभी नहीं अपितु वह तो एक नई प्रेरणा है, तो इस पाँचवीं लगातार असफलता से प्रेरणा लेकर पतलू भाई ने सोचा कि बहुत हो गई पढ़ाई अब कुछ और ही किया जाए। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि अपना जीवन लेने के लिए नहीं, देने के लिए है, तो पतलू भाई भी कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे उन्हें संतुष्टि मिल सके और समाज को कुछ दे पाने की चाहत तो मन में हिलोरें ले ही रही थी।
मनन, चिंतन और गहन विचारमंथन के बाद पतलू भाई ने आख़िर सोच ही लिया की करना क्या है और बस लग गए तन-मन-धन से अपने नए कार्य में। स्वयं को समाज को समर्पित करने की ठान ली थी उन्होंने। बहुत कम समय में ही पतलू भाई महज़ पतलू भाई नहीं रहे बल्कि एक शख्स़ियत बन गए। अब पतलू भाई स्वयं तो डाक्टर नहीं बन पाए लेकिन न जाने कितने ही लोग उनकी शरण में आकर डाक्टर बन गए और अभी पतलू भाई की तुलना पारस पत्थर से की जाने लगी थी, पारस पत्थर चीज़ों को सोना बनाता था और पतलू भाई लोगों को डाक्टर। तो समाज की बीमारियाँ तो उन्होंने इतने डाक्टर बनाकर लगभग दूर कर दीं साथ ही कुछ इंजीनियर भी दे डाले।
सिसरो ने कहा था जीवन में बुद्धि का नहीं लक्ष्मी का साम्राज्य है, यह बात पतलू भाई को हर्षित कर देती थी। पतलू भाई थे लक्ष्मी जी के अनन्य भक्त और ये बात जगजाहिर थी तो लोग पतलू भाई को लक्ष्मी जी के दर्शन कराते और पतलू भाई आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे के। पतलू भाई किसी भी पर्चे को बहुत ही सहजता से परीक्षा से पहले ही अपने शुभचिंतकों को और उन लोगों को जो उन्हें लक्ष्मी जी के दर्शन करा सकते थे, उपलब्ध करा दिया करते थे। पतलू भाई के पर्चे जाने कहाँ से चुपके से आते और कुछ चुनिंदा लोगों को लाभान्वित कर वैसे ही निकल जाया करते थे जैसे सरकारी राशन की दुकान से चीनी। आम लोगों को न चीनी का पता चलता न पर्चे का। एक बार मेरी मुलाक़ात ऐसे ही पतलू भाई से हो गई थी, चल पड़ी बात, मैंने पूछा- पतलू भाई आप कौन-सी परीक्षाओं के पर्चे निकलवाते हैं। पतलू भाई ने कुटिल मुस्कान चेहरे पर धारण कर गौरवान्वित होते हुए कहा- मेरे पास आइए, लक्ष्मी के दर्शन कराइए, परीक्षा का नाम बताइए, पर्चा ले जाइए।

पतलू भाई की यह बात सुनकर मेरी आँखें वैसे ही खुली रह गईं जैसे न्यायालय में चल रहे केस की फ़ाइल जो एक बार खुलती है तो बंद होने का नाम ही नहीं लेती। पतलू भाई का समाज सेवा का काम अच्छे से चल रहा था लेकिन इधर मौसम में परिवर्तन हुआ और उधर पतलू भाई के निवास स्थान में, अभी पतलू भाई से जेल में मिला जा सकता था, न जाने कैसे पतलू भाई की ये समाज सेवा वाली बात पुलिस को पता चल गई थी। पतलू भाई कहते हैं कि वो उन छात्रों की मदद कर रहे थे जिनके सपने वैसे शायद कभी पूरे न हो पाते। तो इस प्रकार से वो उन छात्रों की मदद कर रहे थे जिनको पाठय पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति लोरियाँ सुनाती थीं और फिर जो तेज़ दिमाग़ वाले हैं वो तो कभी भी कहीं भी सफलता का गीत गा सकते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि एक साथ विवेक और लक्ष्मी का वरदान विरलों को ही मिलता है। वर्तमान समय में जिसके पास विवेक है उसके सफल होने की संभावना है और जिसके पास लक्ष्मी है उसकी सफलता निश्चित है। पतलू भाई सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास करते थे और अपना काम करते-करते पाँच दस लाख जो भी बन जाया करते उसी में रुखा-सूखा खाकर वो अपना गुज़ारा कर लिया करते थे।
पतलू भाई को जेल में आए हुए दस महीने बीत चुके थे और वो जेल की सुविधाओं का भरपूर आनंद उठा रहे थे। इधर स्थानीय अख़बारों में एक ख़बर मोटे-मोटे अक्षरों में छपी थी, एक बार फिर मेडिकल परीक्षा का पर्चा आउट।
पतलू भाई जेल में बैठ कर गर्व का अनुभव कर रहे थे और ये सोंचकर उनकी आँखें नम हो गई थीं कि कोई है जो उनके अधूरे सपने को पूरा कर रहा है। मैं और मेरे जैसे कुछ लोग जो एक पतलू भाई के गिरफ़्तार होने से खुश थे वो अनेक पतलू भाइयों को उदित होते देख सोंच रहे थे कि शायद सच में ये युग पतलू भाई और उनके समर्थकों का है और इसमें तंग जेब वाले पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को सफल होने का कोई अधिकार नहीं है। मुंशी जी ने गोदान में बिल्कुल सही लिखा था, हमें संसार में रहना है तो धन की उपासना करनी पड़ेगी, इसी से लोक परलोक में कल्याण होगा। पतलू भाई का अगला लक्ष्य नेता बनकर समाज की सेवा करना है

Friday, November 26, 2010

मुन्ना भाई यमलोक मैं

मुन्ना भाई यमलोक मैं

मुन्नाभाई और सर्किट नरक में पहुंचे। वहां यमदूत ने उनका स्वागत किया और नरक की सैर कराई। यमदूत ने बताया कि यहां तीन तरह के नरक-कक्ष है और उसे अपनी पसन्द का कक्ष चुनने की आजादी है।

पहला कक्ष आग की लपटों और गर्म हवाओं से इस कदर भरा हुआ था कि वहां सांस लेना भी दूभर था। मुन्नाभाई ने कहाः ओए सर्किट! यहां रहकर तो अपुन की हालत खराब हो जाएगी... चल कोई दूसरा रूम देखते हैं...
यमदूत उन्हें दूसरे नरक कक्ष में ले गया। यह कक्ष सैंकड़ों आदमियों से भरा हुआ था। वहां बेहद गर्मी थी और धुआं फैला हुआ था। चारों ओर चीखपुकार का माहौल था। मुन्नाभाई और सर्किट यह सब देखकर घबरा गए और उन्होंने यमदूत से कोई और कक्ष दिखाने की प्रार्थना की।

तीसरा और अंतिम कक्ष ऐसे लोगों से भरा हुआ था जो बस आराम कर रहे थे और कॉफी पी रहे थे। यहां अन्य दो कक्षों जैसी कष्टदायक कोई बात नहीं दिखी। मुन्नाभाई ने कहाः अबे सर्किट! यह रूम अपुन के हाथ से नहीं निकलना चाहिए... इस यमदूत को पटा, फटाफट इसी रूम का नंबर लगा लेते हैं!!

यमदूत ने दोनों उसी कक्ष में छोड़ा और चला गया। मुन्नाभाई और सर्किट ने एक-एक कॉफी ली और आराम से एक तरफ बैठ गए।

कुछ मिनटों बाद लाउडस्पीकर पर एक आवाज गूंजीः ब्रेक टाइम खत्म हुआ। अब फिर से दस हजार घूंसे खाने के लिये तैयार हो जाओ!

एक्सिडेन्ट

 

मुझे भी देखने दो किसका एक्सिडेन्ट हुआ है। एक आदमी भीड हटाते हुए बोला । जब कोई हटा नही तो वह चिल्ल्ता हुआ बोला, जिसका एक्सिडेन्ट हुआ है मै उस का पिता हूँ।
रास्ता मिल गया। अदंर देखा तो एक गधा मरा पडा था।

चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं...

चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं...

एक एरिया में भाई रहता है, चमन भाई.. अब उसके एरिया में जो भी लफ़ड़ा होता है तो पुलिस से पहले चमन भाई की अदालत में जाता है.

एक बार चमन भाई के एरिया में रेप हो जाता है और जिस ने काम बजाया होता है उसको पकड़ के चमन भाई के पास लेके जाते है. चमन भाई पहले तो बहुत शान्ति से स्टाईल में उससे बात करते है वो कुछ इस तरह से है.

चमन: क्या रे तेरे को मालूम नहीं ये अपुन का एरिया है??

मुजरीम: हाँ मालूम है ना भाई.

चमन: फ़िर कैसे हिम्मत किया रेप की मेरे एरिया मे?

मुजरीम: अब क्या बोलु भाई किस्मत खराब थी.

चमन: चल मेरे को सब सच सच बता क्या और कैसे हुवा

मुजरीम: अभी क्या ना इधर नाके पे अपुन पान खाने के लिये आया

चमन: फ़िर..

मुर्जिम: अपुन खड़े होके पान खारेला था और उतने में सामने वाली बिल्डींग पे अपुन की नज़र गई.

चमन: आगे बोल

मुजरीम: उधर तीसरी माले पे एक चिकनी खड़ी हुए थी

चमन: फ़िर क्या हुवा

मुजरीम: अपुन को ऐसा लगा के उसने इशारा किया आने के लिये

चमन: फ़िर तुने क्या किया

मुजरीम: अपुन सोचा के कुछ काम होएंगा उसको. अपुन बिल्डींग के नीचे गया

चमन: फ़िर

मुजरीम: उसने इशारे से अपुन को उपर बोलाया.. अपुन सिड़ी चड़ते हुए सोच रहा था चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन: चल फ़टा फ़ट आगे बोल

मुजरीम: अपुन ने उसको जाके बोला क्या काम है? काईको इशारा किया अपुन को?

चमन: फ़िर

मुजरीम: फ़िर क्या भाई अपुन को उसने घर में अन्दर खींच लिया

चमन: फ़िर

मुजरीम: अपुन घर में तो चला गया लेकिन सोच रहा था के चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन: आगे बोल

मुजरीम: उसने अपुन का हाथ पकड़ लिया

चमन: अच्छा?

मुजरीम: सच्छी बोलता है भाई हाथ पकड़ते ही अपुन फ़िर सोचा चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन : फ़िर क्या हुवा

मुजरीम: फ़िर क्या था उसने बोला चिकने मेरी प्यास बुझा दे

चमन: फ़िर तु क्या बोला (जोश में आकर)

मुजरीम: अपुन क्या बोलता? उसने अप्ना दुपट्टा नीचे गिरा दिया

चमन: तो क्या हुवा..

मुजरीम: अपुन के दिमाग की ढाइ हो गई क्या बॉडी थी साली की... लेकिन भाई फ़िर भी अपुन सोचा चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन: फ़िर तुने क्या किया

मुजरीम: अपुन बोला एकाद किस करेगा और चला जायेगा. बोले तो बॉडी काम करेंगा लेकिन इन्जन नहीं खोलने का

चमन: तो फ़िर

मुजरीम: उसने अपुन को खीच लिया सच्ची बोला है भाई ऐसी कातिल जवानी अपुन अक्खी लाइफ़ में नहीं देखा

चमन: हाँ वो तो है तो आगे बोल (गर्म होते हुए)

मुजरीम: फ़िर क्या था अपुन ने किस किया, लेकिन इमान से बोलता है सोच रहा था चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन : आगे बोल

मुजरीम: फ़िर उसने अपनी कमीज़ उतार दी

चमन: फ़िर

मुजरीम : फ़िर सलवार. लेकिन अपुन के दिल में एक ही खयाल आ रहा था चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन: आगे आगे

मुजरीम: फ़िर बिलाउस और चड्डी साली ने सब उतार दी

चमन : सही में. फ़िर

मुजरीम: फ़िर मेरी पेन्ट खीच ली

चमन : अच्छा. फ़िर फ़िर

मुजरीम: मेरी अंडरवीयर में हाथ डाल दिया

चमन: ओह! फ़िर, फ़िर, फ़िर

मुजरीम: चड्डी उतार दी मेरी लेकिन अपुन फ़िर भी सोचा चमन भाई का एरिया है लफ़ड़ा नहीं करने का

चमन : (गुस्सा होते हुए) अरे चमन गया माँ चुदाने तु आगे बोल.

मुजरीम : यही सोच के तो मैने रेप कर डाला.

Thursday, November 18, 2010

CHANDWAS (NAVEEN SHEORAN)

NAVEEN SHEORAN
+919812335234,+919812794323


Ye Keh Kar Us Ne Hum Ko Bhari Mehfil Ma Ruswa Kar Diya 'NK'!

Seedha Ho K Beth Teri Shalwar Phati Hoi Ha

(,^^)>
<)) "

Oh Ly Ami Ny Fyr Nai Sitti |\_


Beqarari meri dekh li hai to ab mera zabt b dekhna NK,
Itna khamosh rahun ga k cheekh uthay ga woh.




Sharif itne thy K Kabhi Qameez k Button tak nahi Kholay..









"NK".





Magar is be'dard "Bijli."ne to

nargas bana diya.:-(