1. एक बै एक छोरा स्कूल नहीं आया । आगलै दिन मास्टर नै पूछा - रै, कल स्कूल क्यूं ना आया था?
बाळक बोल्या - मास्टर जी, म्हारी भैंस नै काटड़ा दिया था ।
मास्टर बोल्या - इसमैं के खास बात हो-गी ?
बाळक नै जवाब दिया - जी, खास बात ना सै, तै आप दे कै दिखा दो !!
2.
एक बै स्कूल में मास्टर जी नै एक छोरे तैं बूझा - "कपड़ा किसे कहते हैं ?"
छोरा बोल्या - जी बेरा कोनी ।
मास्टर गुस्से में हो-कै बोल्या - तेरी पैंट किस चीज की बनी है ?
छोरा बोल्या - जी, मेरे बाबू की पुरानी पैंट की !!
3.
एक भूगोल की मास्टरनी घणी पतली, बोद्दी-सी थी, जमा आइसक्रीम के लीकड़े जिसी । क्लास नै पाछले दिन का पाठ दोहरावै थी । बोली - बोलो बच्चो, धरती क्यूं घूमती है ?
एक छोरा बोल्या - मैडम, किमैं खा-पी लिया कर, ना तै न्यूं-ऐं घूमती दीखैगी !!
4.
भाइयो, हुया न्यूं अक एक-बै रात के बखत एक स्कूल की छात (छत) पड़-गी । तड़कैहें-तड़कैहें जब बाळक स्कूल में गये तै घणे कसूते राजी हो रहे थे, अर मेरे-मटे कूदते हांडैं - अक भाई यो तै कसूत काम हो-ग्या, ईब कई दिनां ताहीं पढ़ाई ए ना हो । सारे मास्टर अर हैडमास्टर खड़े हो-कै देखण लाग रहे - अर बाळकां के तै चेहरे कत्ती सिरसम के फूल जिसे खिल-रे थे ।
इतने में हैडमास्टर नै बगल में देख्या अक एक छोरा घणा मुरझाया सा, घणा भूंडा दुखी-सा, अर फूट-फूट कै रोवण लाग रहा था । ईब हैडमास्टर जी नै सोची अक यो छोरा तै घणा बढ़िया, पढ़णियां सै, अर बेचारा घणा दुख मान रहया सै स्कूल के नुकसान होवण का ।
हैडमास्टर आगै गया, उस नै डाटण खातिर, अर जा-कै बोल्या - "बेटा, दुखी मतना हो, मैं समझूं सूं तन्नै कितना दुख सै अक यो सारे गाम का नुकसान सै, अर ईब पढ़ाई कई दिनां ताहीं रुक ज्यागी । पर बेटे, मैं नई छत जितणी जलदी हो सकैगी, बणवा दूंगा" ।
छोरा एकदम तैं रोणा छोड कै बोल्या - "अरै ना मास्टरजी, इसा जुलम मतना करियो । मैं तै न्यूं रोऊं था अक मुश्किलां-सी तै छात पड़ी, अर मास्टर एक भी ना मरया" !!
5.
एक बै एक स्कूल में नाटक होया । उस नाटक में एक छोरी नै बूआ का रोल करना पड़-ग्या । फिर यो बूआ का रोल करे पाच्छै सारी क्लास के बाळक उसनै "बूआ-बूआ" कह कै छेड़ण लाग्गे ।
उस छोरी नै दुखी हो कै एक दिन मास्टर ताहीं बता दी अक - जी, ये सारे मन्नै बूआ-बूआ कह कै छेड़ैं सैं ।
मास्टर कै ऊठ्या छो, अर बोल्या - "अरै, खड़े हो ज्याओ जुणसे-जुणसे इसनै बूआ कहैं सैं" ।
सारी क्लास खड़ी हो गई, बस एक छोरा पाच्छै-सी बैठ्या रह-ग्या । मास्टर उस छोरे नैं बोल्या - क्यूं रै, तेरा के चक्कर सै ?
वो छोरा सहज-सी आवाज में बोल्या "जी, ये जुणसे खड़े सैं ना, मैं इन सारयां का फूफा सूँ !!
6.
एक छोरा क्लास में घणा बोल्या करता । उसका मास्टर बोल्या - रै छोरे, तेरै या बीमारी कित्तैं लाग्गी ?
छोरा बोल्या - जी या तै खानदानी सै । मेरा दादा वकील था अर मेरा बाबू मास्टर, उनकै भी या बीमारी थी ।
मास्टर बोल्या - अरै, तेरी मां तै ठीक-ठाक होगी ?
छोरे नै जवाब दिया - "जी, वा तै औरत सै" !!
7.
हिसाब का मास्टर तीसरी क्लास नै पढ़ावै था । बाळकां तैं बूझण लाग्या - दो रुपये का एक किलो गुड़ आवै सै, तै पच्चीस पईसे का कितना आवैगा ?"
थोड़ी हाण पाच्छै एक छोरे नै हाठ ठाया । मास्टर बोल्या - शाबाश लीलू, बता बेटा ।
लीलू – मास्टर जी, बताऊं ? दो छोटी-छोटी डळी अर थोड़े से भोरे !!
बाळक बोल्या - मास्टर जी, म्हारी भैंस नै काटड़ा दिया था ।
मास्टर बोल्या - इसमैं के खास बात हो-गी ?
बाळक नै जवाब दिया - जी, खास बात ना सै, तै आप दे कै दिखा दो !!
2.
एक बै स्कूल में मास्टर जी नै एक छोरे तैं बूझा - "कपड़ा किसे कहते हैं ?"
छोरा बोल्या - जी बेरा कोनी ।
मास्टर गुस्से में हो-कै बोल्या - तेरी पैंट किस चीज की बनी है ?
छोरा बोल्या - जी, मेरे बाबू की पुरानी पैंट की !!
3.
एक भूगोल की मास्टरनी घणी पतली, बोद्दी-सी थी, जमा आइसक्रीम के लीकड़े जिसी । क्लास नै पाछले दिन का पाठ दोहरावै थी । बोली - बोलो बच्चो, धरती क्यूं घूमती है ?
एक छोरा बोल्या - मैडम, किमैं खा-पी लिया कर, ना तै न्यूं-ऐं घूमती दीखैगी !!
4.
भाइयो, हुया न्यूं अक एक-बै रात के बखत एक स्कूल की छात (छत) पड़-गी । तड़कैहें-तड़कैहें जब बाळक स्कूल में गये तै घणे कसूते राजी हो रहे थे, अर मेरे-मटे कूदते हांडैं - अक भाई यो तै कसूत काम हो-ग्या, ईब कई दिनां ताहीं पढ़ाई ए ना हो । सारे मास्टर अर हैडमास्टर खड़े हो-कै देखण लाग रहे - अर बाळकां के तै चेहरे कत्ती सिरसम के फूल जिसे खिल-रे थे ।
इतने में हैडमास्टर नै बगल में देख्या अक एक छोरा घणा मुरझाया सा, घणा भूंडा दुखी-सा, अर फूट-फूट कै रोवण लाग रहा था । ईब हैडमास्टर जी नै सोची अक यो छोरा तै घणा बढ़िया, पढ़णियां सै, अर बेचारा घणा दुख मान रहया सै स्कूल के नुकसान होवण का ।
हैडमास्टर आगै गया, उस नै डाटण खातिर, अर जा-कै बोल्या - "बेटा, दुखी मतना हो, मैं समझूं सूं तन्नै कितना दुख सै अक यो सारे गाम का नुकसान सै, अर ईब पढ़ाई कई दिनां ताहीं रुक ज्यागी । पर बेटे, मैं नई छत जितणी जलदी हो सकैगी, बणवा दूंगा" ।
छोरा एकदम तैं रोणा छोड कै बोल्या - "अरै ना मास्टरजी, इसा जुलम मतना करियो । मैं तै न्यूं रोऊं था अक मुश्किलां-सी तै छात पड़ी, अर मास्टर एक भी ना मरया" !!
5.
एक बै एक स्कूल में नाटक होया । उस नाटक में एक छोरी नै बूआ का रोल करना पड़-ग्या । फिर यो बूआ का रोल करे पाच्छै सारी क्लास के बाळक उसनै "बूआ-बूआ" कह कै छेड़ण लाग्गे ।
उस छोरी नै दुखी हो कै एक दिन मास्टर ताहीं बता दी अक - जी, ये सारे मन्नै बूआ-बूआ कह कै छेड़ैं सैं ।
मास्टर कै ऊठ्या छो, अर बोल्या - "अरै, खड़े हो ज्याओ जुणसे-जुणसे इसनै बूआ कहैं सैं" ।
सारी क्लास खड़ी हो गई, बस एक छोरा पाच्छै-सी बैठ्या रह-ग्या । मास्टर उस छोरे नैं बोल्या - क्यूं रै, तेरा के चक्कर सै ?
वो छोरा सहज-सी आवाज में बोल्या "जी, ये जुणसे खड़े सैं ना, मैं इन सारयां का फूफा सूँ !!
6.
एक छोरा क्लास में घणा बोल्या करता । उसका मास्टर बोल्या - रै छोरे, तेरै या बीमारी कित्तैं लाग्गी ?
छोरा बोल्या - जी या तै खानदानी सै । मेरा दादा वकील था अर मेरा बाबू मास्टर, उनकै भी या बीमारी थी ।
मास्टर बोल्या - अरै, तेरी मां तै ठीक-ठाक होगी ?
छोरे नै जवाब दिया - "जी, वा तै औरत सै" !!
7.
हिसाब का मास्टर तीसरी क्लास नै पढ़ावै था । बाळकां तैं बूझण लाग्या - दो रुपये का एक किलो गुड़ आवै सै, तै पच्चीस पईसे का कितना आवैगा ?"
थोड़ी हाण पाच्छै एक छोरे नै हाठ ठाया । मास्टर बोल्या - शाबाश लीलू, बता बेटा ।
लीलू – मास्टर जी, बताऊं ? दो छोटी-छोटी डळी अर थोड़े से भोरे !!
No comments:
Post a Comment