About Me

My photo
मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं. मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है! मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं....... कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी... कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी.... मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं... मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं... मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी... बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं... मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी... लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं!आप मुझे nksheoran@gmail.com पर ईमेल से सन्देश भेज सकते हैं.+919812335234,+919812794323

Monday, December 5, 2011

मास्टरजी

आज पता नहीं क्यों बारिश की बौछार रुकने का नाम ही न ले रही थी। अनामिका को कल होने वाली परीक्षा की चिंता थी। सुबह से ही वह गणित के पुस्तक के पन्नों को बार-बार पलटकर उसके सवालों को हल किए जा रही थी। अंकगणित व बीजगणित के प्रश्न तो आसानी से हल हो रहे थे पर, ज्यामिति उसके लिए एक सिरदर्द बनकर खड़ा हुआ था। लाख कोशिशों के बावज़ूद ज्यामिति का वह प्रश्न हल नहीं हो पा रहा था। उसे लगने लगा कि वह अपने प्रथम स्थान को कायम न रख पाएगी। अब वह पूछे तो भला किससे ? उस गाँव में तो उसकी मदद करनेवाला भी तो कोई न था। वृक्ष, लता-गुल्मों से हरे-भरे उस गाँव में कृषि विशेषज्ञ तो कई थे पर, गणित...
तभी उसे स्वरूप मास्टरजी का खयाल आया। वे गाँव में प्राइवेट ट्यूशन का कारोबार करते थे। उस कारोबार से उनकी आमदनी भी अच्छी ही थी। अनामिका के बाबूजी को कई बार उन्होंने कहा था कि उसकी पुत्री को वे उनके पास भेज दिया करें पर, अनामिका को अपने स्वाध्याय पर विश्वास था। आज उसका विश्वास डगमगा गया था। सोचा उनके यहाँ जाकर क्यों न उनसे सहायता ली जाए। परन्तु, साथ ही एक संकोच-बोध से उसका मन भर गया। उन्होंने तो उसे कई बार बुलाया था; वही तो नहीं गई थी। फिर सोचा, मास्टरजी ही तो हैं, अवश्य उसकी सहायता करंगे। इसी उधेड़-बुन में संध्या होने को आई। अबकी वह निश्चय कर चुकी थी कि वह उनसे सहायता लेने अवश्य जाएगी।
मास्टरजी का घर गाँव के दूसरी छोर पर था। वहाँ वे एकांतवास किया करते थे। बस सुबह और शाम को बच्चों की शोरगुल से आभास होता था कि वहाँ कोई रहता भी है, अन्यथा वह क्षेत्र वीराना ही था। लोगों का मानना था कि मास्टरजी बड़े शांतिप्रिय थे, इसलिए उन्होंने इस वीराने में ही अपना आशियाना बनाया था।
अब भी मूसलाधार बारिश हो रही थी। शाम का समय और उसपर रह-रहकर जोरदार मेघ-गर्जन उस वातावरण को और भी भयावह बना रहे थे। अनामिका इंतज़ार कर रही थी कि कब बारिश रुके। संयोग से बारिश काफ़ी धीमे हो गई। अनामिका ने अपनी किताब व कॉपी उठाई और तेज़ कदमों से मास्टरजी के घर की ओर चल दी। घर से निकलने समय उसकी माँ ने उससे पूछा भी कि वह कहाँ जा रही है? उसने चिल्लाकर कहा कि मास्टरजी के यहाँ। माँ निश्चिंत हो गई। तेज़ कदमों से वृक्ष के झुंडों, लता-गुल्मों को पार करते हुए वह बढ़ी जा रही थी। अचानक, रुकी बारिश फिर से तेज़ हो गई। आधा से अधिक रास्ता बीत चुका था, इसलिए वह न लौटी। अपनी किताब-कॉपी को संभालते हुए अख़िरकार पानी से पूरी तरह तर-बतर मास्टरजी के घर के दरवाज़े पर पहुँच चुकी थी। अंधेरा बढ़ चला था। बारिश की वज़ह से आज मास्टरजी का कारोबार ठप्प पड़ा था। पूरी नीरवता व्याप्त थी। बस, बारिश की रिमझिम ही पूरे परिवृत्त में मौज़ूद थी। फिर से अनामिका के मस्तिष्क में वही द्विधा-बोध, जो घर से निकलने से पहले थी, जागृत हुई। पर, दृढ़ निश्चय कर उसने उनका दरवाज़ा खटखटाया। मास्टरजी निकले। यह उन दोनों का प्रथम साक्षात्कार था। तभी बिजली चमकी। उसके प्रकाश में गीले कपड़ों में लिपटा नवम की छात्रा अनामिका का जिस्म देख मास्टरजी की आँखें चमक उठीं। मास्टरजी ने उससे अंदर आने को कहा। थोड़ी ही देर बाद तीक्ष्ण आवाज़ से पूरा परिवेश गुँजायमान हो गया – ये क्या कर रहे हैं आप... आह... बचाओ... मत कीजिए ऐसा... बचाओ... बचाओ...
अगली सुबह बलात्कृत निर्वस्त्र अनामिका अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ निढाल हो चली जा रही थी परीक्षा देने...

No comments:

Post a Comment