आज भी याद आती है मुझे अपने स्कूल के दिनों की। गढ़वाल की एक सुंदर सी पहाड़ी के ऊपर एक समतल स्थान पर था हमारा जूनियर हाई स्कूल (आठवीं तक) , तीन तरफ से छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ। अच्छा ख़ासा मैदान बना था। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़, सामने उत्तर में विशाल हिमालय। दक्षिण में जंगल, जहां काफल, बांज, बुरान्स के लाल लाल मन मोहक फूल। जैसे कुदरत ने अपनी सारी संपदा यहीं आकर बिखेर दी हो। चार बजे स्कूल की छुट्टी होती थी, जिन बच्चों के घर नज़दीक थे वे तो अपने घर चले जाते थे, जो दूर से आते थे वे वहीं राशन-पानी और बिस्तरा के साथ आते थे और वहीं स्कूल में ही रहते थे।
हेड मास्टर जी के साथ एक अंग्रेज़ी के सर भी रहते थे। हमारे हेड मास्टर जी का नाम था गेन्दा राम। कहते हैं जब वे पैदा हुए थे, उस समय उनके घर के बाहर कुछ लड़के गेंद खेल रहे थे। गेंद उछल कर उनके पास आकर रुक गयी थी। बस उनके पिता जी ने उनका नाम उसी समय गेन्दा राम रख दिया था। उनके पास एक फ़ौजी निकर थी, जो उन्हें उनके दादा जी ने दी थी। जो फौज में हवलदार मेजर थे और वॉलीबॉल खेलते थे। उनकी दिली इच्छा थी कि मेरा पोता बड़ा होकर वॉलीबॉल और मेरा नाम रोशन करे।
जिस दिन से उनके दादा जी ने उन्हें यह निकर उन्हें दिया था उसी दिन से उन्होंने वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। निकर उनके घुटनों से नीचे तक आती थी। उनके दादा तो खूब मोटे तगड़े थे, लेकिन मास्टर गेंदराम जी दुबले-पतले थे। पेट कमर जैसे उनकी थी ही नहीं। फिर भी शाम को रोज स्कूल बंद होते ही वे निकर पहन कर वॉलीबॉल नेट पर खड़े हो जाते थे। निकर ढीली थी, डोरी से कमर पर कस कर बांध देते थे। अमूमन वे नेट पर बॉल मारते थे और उन्हें मारने के लिए उछलना पड़ता था। जैसे ही वे उछलते थे उनकी निकर नीचे आ जाती थी और वे उछलकर उसे ऊपर खिसका देते थे।
हमेशा ऐसा ही होता था और एक दिन, जैसे मास्टर जी ने बॉल मारी और निकर ऊपर खिसकाने लगे, तभी नेट पर बॉल फिर आ गई। उन्होंने निकर छोड़ कर उछाल मारी और बॉल नेट के पार। पॉइंट मिल गया, लेकिन मास्टर गेन्दा राम जी का निकर, रस्सी सहित नीचे धरती पर आ गिरा। खूब ताली बजी, मास्टर जी ने भी बजाई। दर्शकों ने मास्टर जी की निकर को और मास्टर जी ने गेम जीतने को।
हेड मास्टर जी के साथ एक अंग्रेज़ी के सर भी रहते थे। हमारे हेड मास्टर जी का नाम था गेन्दा राम। कहते हैं जब वे पैदा हुए थे, उस समय उनके घर के बाहर कुछ लड़के गेंद खेल रहे थे। गेंद उछल कर उनके पास आकर रुक गयी थी। बस उनके पिता जी ने उनका नाम उसी समय गेन्दा राम रख दिया था। उनके पास एक फ़ौजी निकर थी, जो उन्हें उनके दादा जी ने दी थी। जो फौज में हवलदार मेजर थे और वॉलीबॉल खेलते थे। उनकी दिली इच्छा थी कि मेरा पोता बड़ा होकर वॉलीबॉल और मेरा नाम रोशन करे।
जिस दिन से उनके दादा जी ने उन्हें यह निकर उन्हें दिया था उसी दिन से उन्होंने वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। निकर उनके घुटनों से नीचे तक आती थी। उनके दादा तो खूब मोटे तगड़े थे, लेकिन मास्टर गेंदराम जी दुबले-पतले थे। पेट कमर जैसे उनकी थी ही नहीं। फिर भी शाम को रोज स्कूल बंद होते ही वे निकर पहन कर वॉलीबॉल नेट पर खड़े हो जाते थे। निकर ढीली थी, डोरी से कमर पर कस कर बांध देते थे। अमूमन वे नेट पर बॉल मारते थे और उन्हें मारने के लिए उछलना पड़ता था। जैसे ही वे उछलते थे उनकी निकर नीचे आ जाती थी और वे उछलकर उसे ऊपर खिसका देते थे।
हमेशा ऐसा ही होता था और एक दिन, जैसे मास्टर जी ने बॉल मारी और निकर ऊपर खिसकाने लगे, तभी नेट पर बॉल फिर आ गई। उन्होंने निकर छोड़ कर उछाल मारी और बॉल नेट के पार। पॉइंट मिल गया, लेकिन मास्टर गेन्दा राम जी का निकर, रस्सी सहित नीचे धरती पर आ गिरा। खूब ताली बजी, मास्टर जी ने भी बजाई। दर्शकों ने मास्टर जी की निकर को और मास्टर जी ने गेम जीतने को।
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