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मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं. मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है! मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं....... कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी... कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी.... मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं... मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं... मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी... बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं... मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी... लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं!आप मुझे nksheoran@gmail.com पर ईमेल से सन्देश भेज सकते हैं.+919812335234,+919812794323

Monday, November 29, 2010

समय बड़ा बलवान

बहुत पहले की बात है। किशन की मां हर रविवार को कुछ अच्छे और मीठे पकवान बनाया करती थीं। वे अपने बेटे को बहुत प्यार करती थीं। एक दिन जब वे मीठी खीर बना रही थीं, तो देखा कि गुड़ खत्म हो गया है। उन्होंने सोचा कि क्यों न किशन को गुड़ लाने के लिए कहा जाए! साथ ही, उन्होंने मन ही मन यह भी सोचा कि वह समय पर गुड़ ला पाएगा या नहीं! फिर वे सोचने लगीं कि यदि वह नहीं भी ला पाएगा, तो मैं स्वयं ले आऊंगी। और कुछ सोचते हुए उन्होंने नन्हे किशन को आवाज लगाई और उसके हाथ पर दो आना रखते हुए कहा, 'बेटा दौड़ कर जाओ, और दुकान से गुड़ ले आओ।'
किशन घर से बाहर आया। राह में किशन ने देखा कि कुछ लोग एक जगह पर खड़े हैं और किसी चीज को ध्यानपूर्वक देख रहे हैं। वह कौतूहलवश पास गया, तो देखा कि कुछ लोग कठपुतलियों का नाच दिखा रहे हैं। किशन का बाल मन भी नाच देखने के लिए थोड़ा मचल उठा। वह उस जगह जाकर नाच देखने लगा। उस मनमोहक खेल में वह इतना रम गया कि घर का कुछ खयाल ही न रहा। तमाशा खत्म होने के बाद जब वह गुड़ लेकर घर पहुंचा, तो देखा कि खीर तैयार हो चुकी है। शायद मां खुद दुकान से गुड़ ले आई थी! वह आत्मग्लानि से भर कर एक कोने में बैठ गया। उस वक्त उसके मन में यह विचार आया कि ईश्वर ने मुझे किसी आवश्यक कार्य को करने के लिए ही इस पृथ्वी पर भेजा है! मां के साधारण कार्य को भी मैं जब पूरा नहीं कर पाया, तो जीवन में श्रेष्ठ कार्यो को कैसे समय पर पूरा कर पाऊंगा? सच तो यह है कि उस खास कार्य को पूरा करना ही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए हमें समय के सदुपयोग पर भी विचार करना चाहिए। क्योंकि किसी भी कार्य को, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो, यदि हम समय पर पूरा नहीं कर पाते हैं, तो बड़े कार्यो को संपन्न करने के बारे में कैसे सोच पाएंगे?

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